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आज गांधी विचारधारा की नितांत जरूरत |

समाचार का दिनांक : 21-04-2021 144 Views
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सर्वधर्म समभाव और बहुलवादी संस्कृति पर भौतिकता एवं पश्चिमीकरण का प्रभाव एवं दबाव असहनीय होते जा रहा है, ऐसे मौके पर गांधी विचारधारा की नितांत आवश्यकता है। गांधी के विविध कार्यक्रमों पर अनेक विद्वानों ने जो मत प्रकट किया है यह भी आज के लिए अत्यंत जरूरी है। मैं चूंकि देश के एक ऐसे प्रदेश छत्तीसगढ़ से आया हूं जहां गांधी का दो बार पदार्पण हुआ। असहयोग आंदोलन एवं हिंद स्वराज फंड हेतु राष्ट्रव्यापी दौरा के तहत गांधी ने 1920 में जब रायपुर आए तब स्थानीय कार्यकर्ताओं ने गांधी को भरपूर सहयोग दिया था। यह बात कटघोरा के जेबीडी कॉलेज के प्राचार्य प्यारेलाल आदिले ने वर्धा में आयोजित तीन दिवसीय सम्मेलन में कही। गांधी के 150 वें वर्षगांठ के उपलक्ष्य में भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली एवं महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित गांधी और उनकी समसामयिक प्रासंगिकता: समाज संस्कृति और स्वराज विषय पर राष्ट्रीय परिसंवाद का आयोजन मानवता की रक्षा के लिए आज मील का पत्थर साबित होगी। डॉ. आदिले ने आगे कहा कि कंडेल सत्याग्रह, जंगल सत्याग्रह, अछूतोद्धार कार्यक्रम एवं अन्य रचनात्मक कार्यक्रमों के माध्यम से गांधी ने छत्तीसगढ़ में स्वाधीनता संग्राम को मजबूती प्रदान किया ।वर्तमान छत्तीसगढ़ प्रांत चूंकि भू संपदा की दृष्टि से परिपूर्ण है और इसलिए इस प्रदेश का त्वरित विकास संभव है किंतु इसके लिए कुशल व सशक्त नेतृत्व की जरूरत प्रारंभ से ही रहा है। छत्तीसगढ़ में केवल गांधीवादी नारा लगाकर लोग राजनीति करते हैं, जबकि वे गांधी के विचारों व कार्यशैली को दूर-दूर तक तवज्जो नहीं देते हैं। गांधी के द्वारा चलाए गए समावेशी कार्यक्रमों की जरूरत इस प्रदेश को है क्योंकि यहां कृषि व वनोपज की अधिकता है और इसलिए कुटीर उद्योग, मशीनीकरण में कमी, पूर्ण मादक द्रव्य निषेध, भ्रष्टाचार नियंत्रण तथा शिक्षा में एकरूपता के लिए कार्य करना होगा ।ताकि इस प्रदेश की सम्पन्नता का लाभ पूरे प्रदेश वासियों को समान रूप से मिल सके। 9 सत्र में चले सम्मेलन में 520 शोध पत्रों का वाचन किया गया। सम्मेलन में देश भर से विशेष विशेषज्ञ शामिल रहे।